दोहा
***दोहा***
वो सम्पत्ति सुमति हरै
जो उपजे बैर कराय
खुद ना स्थिर जो रहे
मानस को दे वो वघियाय।
मोक्ष प्राप्ति के लोभ में
संत-सामंत को पूज के
जो भूले अपने तात को
ऐसा प्राणी जो करै
वो जाए सीधा नर्क को।।
गज सा तन पायके
जो आलस आधीन हो जाए
हो जाता है तव श्राप तन
तव मुक्ति मुश्किल हो जाए। ।।