दोहा ग़ज़ल
मन से होते काम हैं,मन से ही नाकाम।
मन ही है सारी व्यथा,मन ईश्वर का धाम।।
मन अपना हित साधता,घूमत चारों ओर।
मन में ही यदि ठान लो,होते सारे काम।।
इसकी प्यास बुझे नहीं, करता फिरे तलाश।
रात-दिवस बस घूमता,नहीं देखता शाम।।
बाधा से लड़ता रहे,होती है फिर जीत।
इक-इक पग बढ़ते चलो, चाहे फिर हो घाम।।
मन होता है बावला, चंचल,चपल,अधीर।
रीता चुगली सूझती, करता काम तमाम।।
मन की प्यास बुझे नहीं,कितना करो उपाय।
जोड़-जोड़ दौलत रखे,अंत मिले ना बाम।।
मन थोड़ा विचलित करे, थोड़ा सा घबराय।
जीवन पेड़ बबूल का,मंजिल मिले न राम।।
मन को दृढ़ करते रहें,बात-बात पे आप।
जैसी चाल समय चले,वैसा करिये काम।।
जो भी दिल में ठानिये,लगा दीजिये जोर।
धीरे-धीरे ही सही,पर होता है नाम।।_______________________________