दोहा ग़ज़ल (बात करो दो टूक)
जैसा खुद को चाहिए, करिए वही सलूक
बात घुमाने से भला, बात करो दो टूक
होगा ये सबसे बड़ा, जीवन में अपराध
सहकर अत्याचार भी, अगर रहोगे मूक
बिगड़ निशाना जाएगा, अगर हट गया ध्यान
दिलवा देती हार है , इक छोटी सी चूक
छोटी छोटी बात पर, टूट रहे परिवार
अपनेपन को मारती, तानों की बंदूक
खुशियों के दिन आ गये, बीत गया पतझार
रही आम के बाग में, काली कोयल कूक
पड़े हुये फुटपाथ पर, बेबस ये मजदूर
सुन सुनकर इनकी व्यथा, दिल में उठती हूक
बढ़ता ही अब जा रहा, कपट भरा व्यवहार
सज्जनता को आजकल, कहता जगत उलूक
कहे ‘अर्चना’ ज्ञान के, अपने पंख पसार
जीवन वो किस काम का,, रहे कूप मण्डूक
07-06-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद