दोहा सप्तक. . . . शिक्षा
दोहा सप्तक. . . . शिक्षा
नम्बर वन की रेस का, सबको चढ़ा बुखार ।
बिना लक्ष्य के दौड़ते, बच्चे कई हजार ।।
धन अर्जन का बन गई, शिक्षा अब बाजार ।
फँसे हुए इस जाल में, बच्चे कई हजार ।।
बच्चों पर अब बन गया, शिक्षा एक दबाव ।
खेलें वो अवसाद में, आत्मदाह का दाव ।।
धन अथाह सब लूटते, शिक्षण के संस्थान ।
बच्चों को मिलती नहीं, पर उनकी पहचान ।।
मुश्किल है अब नौकरी , मिलने के आसार ।
चन्द पदों पर हैं खड़े , बच्चे कई हजार ।।
धूम- धाम से चल रहा, शिक्षा का व्यापार ।
गठरी बाँधे आस की, बच्चे हैं लाचार ।।
द्रोण आज के शिष्य से, करते हैं व्यापार ।
कैसे होगा देश में, शिक्षा का उद्धार ।।
सुशील सरना / 28-7-24