दोहा मुक्तक
माँ की कर आराधना, कर में लेकर फूल।
जन्मदात्री मातु हैं, मत जाना यह भूल।
माँ के आशिर्वाद से, जीवन हो उजियार-
चंदन सम माथे धरो, माँ चरणों की धूल।
माँ मेरी विनती सुनो, आया तेरे द्वार।
अज्ञानी हूँ ज्ञान दो, करना यह उपकार।
दे दो माँ सुख शांति सह, बल विद्या का दान-
और मुझे बस चाहिए, माता तेरा प्यार।
आओ मिलकर साथियों, करें प्रतिज्ञा एक।
धरती पर खुशहाल हों, जीव जंतु प्रत्येक।
जीवन में आए नहीं, धन दौलत का मोह-
मन में उच्च विचार हों, कर्म करें हम नेक।
आओ हम वादा करें, ऐ मेरे मनमीत।
मेरे अधरों पर सजे, बस तेरा ही गीत।
बुरे वक्त में हम बनें , इक दूजे की ढाल-
युगों-युगों तक हो अमर, तेरी-मेरी प्रीत।
साजन तुम परदेस विराजो, मैं दिन रात मरूंँ।
रातें लम्बी काली लगती, खुद से आज डरूँ।
पवन मुझे अब छेड़ रहा है, तडपावे पुरवइया-
तुम बिन नैना सावन भादो, कैसे धीर धरूँ।
मौसम के जैसे यहाँ, बदल रहे हैं लोग।
अपनों का मिलना हुआ, मुश्किल सह संयोग।।
षड्यंत्रों का दौर है, बदला है व्यवहार-
रिश्तों में जबसे लगा,खुदगर्ज़ी का रोग।
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य’