दोहा पंचक. . . . सावन
दोहा पंचक. . . . सावन
गौर वर्ण पर नाचती, सावन की बौछार ।
विटप ओट से प्रीत का, हो जाता अभिसार ।।
चंचल दृग नर्तन करें, बौछारों के संग ।
श्वेत वसन से झाँकते, उसके कोमल अंग ।।
गुन -गुन गाएँ धड़कनें, सावन में मल्हार ।
पलक झरोखों में दिखे, प्यारी सी मनुहार ।।
सावन में अक्सर करे , दिल मिलने की आस।
हर गर्जन पर मेघ की, यादें करती रास ।।
अन्तस में झंकृत हुए, सुप्त सभी स्वीकार।
तन पर सावन की करे, वृृष्टि मधुर शृंगार ।।
सुशील सरना / 30-6-23