दोहा पंचक – – – – रात रही है बीत
दोहा पंचक – – – – रात रही है बीत
वक्त प्रतीक्षा में सजन, ऐसे हुआ व्यतीत ।
धड़कन रुकती सी लगे, रात रही है बीत ।।
माना अनबन है जरा , रुष्ट हुआ मन मीत ।
छोड़ो भी अब रूठना, रात रही है बीत ।।
तेरे वादे पर गई , उम्र हमारी रीत ।
राह निहारें कब तलक, रात रही है बीत ।।
रात रही है बीत अब, कब आओगे मीत ।
तुम बिन साँसें को लगे, जीवन फीका गीत ।।
पहली-पहली हार है, पहली-पहली जीत ।
भोर न खोले राज सब, रात रही है बीत ।।
सुशील सरना / 8-7-24