दोहा पंचक. . . . जीवन
दोहा पंचक. . . . जीवन
पीपल बूढ़ा हो गया, झड़े पीत सब पात ।
अपनों से मिलने लगे, घाव हीन आघात ।।
ठहरी- ठहरी जिन्दगी, देखे बीते मोड़ ।
टीस छलकती आँख से,पल जो आए छोड़ ।।
विचलित करता है सदा, सुख का बीता काल ।
टूटे से जुड़ती नहीं, कभी वृक्ष से डाल ।।
अपने ही देने लगे, अब अपनों को मात ।
मिलती है संसार में, आँसू की सौग़ात ।।
पल – पल ढलती जिंदगी, ढूँढे अपना छोर ।
क्या जाने किस साँस की, अन्तिम होगी भोर ।।
सुशील सरना / 3-1-25