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13 May 2024 · 1 min read

दोहा त्रयी. . .

दोहा त्रयी. . .

अवगुंठन में काल के, लुप्त हुए सब हर्ष ।
जरा अवस्था देखती, मुड़ -मुड़ बीते वर्ष ।।

पीत पात सी काँपती, जरा काल में देह ।
विगत काल को याद कर , अविरल बहता मेह ।।

अमिट लिखा हर भोर के, माथ यही पैगाम ।
ढलने से रुकती नहीं, इस जीवन की शाम ।।

सुशील सरना / 13-5-24

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