दोहा त्रयी. . .
दोहा त्रयी. . .
तोड़ दिए आवेश में, मधुर सभी संबंध ।
कैसी फैली स्वार्थ की, संबंधों में गंध ।।
मतलब निकला खो गई, आपस की पहचान ।
खून देखता खून को, जैसे हो अंजान ।।
हर घर में सन्तान के, मात-पिता का चित्र ।
तरसें उस आशीष को, जो था जीवन इत्र ।।
सुशील सरना / 6-5-24