दोहा छंद “वयन सगाई अलंकार”
वयन सगाई अलंकार / वैण सगाई अलंकार
चारणी साहित्य मे दोहा छंद के कई विशिष्ट अलंकार हैं, उन्ही में सें एक वयन सगाई अलंकार (वैण सगाई अलंकार) है। दोहा छंद के हर चरण का प्रारंभिक व अंतिम शब्द एक ही वर्ण से प्रारंभ हो तो यह अलंकार सिद्ध होता है।
‘चमके’ मस्तक ‘चन्द्रमा’, ‘सजे’ कण्ठ पर ‘सर्प’।
‘नन्दीश्वर’ तुमको ‘नमन’, ‘दूर’ करो सब ‘दर्प’।।
‘चंदा’ तेरी ‘चांदनी’, ‘हृदय’ उठावे ‘हूक’।
‘सन्देशा’ पिय को ‘सुना’, ‘मत’ रह वैरी ‘मूक’।।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया