दोहा एकादश
दोहे-*
जीव जगत में है बँधा,तड़प रहा दिन रात।
फिर भी वह सोचे नहीं,आज़ादी की बात।।1
परंपरा की बेड़ियाँ , पड़ीं हमारे पाँव।
आज़ादी हित चाहिए,अब वैज्ञानिक छाँव।।2
आज समय के साथ सब,बदल गए किरदार।
ईर्ष्या, घृणा, घमंड ने ,छीन लिया है प्यार।।3
त्याग विवशता देह की ,जो भी करे प्रयास।
जीवन में वह सफल हो,रख खुद पर विश्वास।।4
स्वार्थ सिद्धि जिनका रहा,सदा सर्वदा लक्ष्य।
नहीं देखते वे कभी ,क्या है भक्ष्य अभक्ष्य।।5
जीवन है छोटा बहुत,करने काम तमाम।
बिना थके चलते रहो,मत करना विश्राम।।6
डाली जब विश्वास में,शक ने एक दरार।
टूट गए संबंध के,झट से नाजुक तार।।7
जिसके भी व्यवहार से,आए शक की गंध।
उससे मत जोड़ो कभी ,कोई भी संबंध।।8
मुझको आतीं हिचकियाँ,कहतीं हैं ये बात।
उनको भी आती नहीं ,निंदिया सारी रात।।9
करते हैं तहज़ीब की ,वे ही ज्यादा बात।
कोशिश जो करते मिले,मानवता को मात।।10
सरे आम कानून का, वे करते हैं खून।
शांति व्यवस्था भंग कर,जिनको मिले सुकून।।11
डाॅ बिपिन पाण्डेय