दोहावली…
आलोचक की बात सुन, शायद हो सौग़ात।
वही हितैषी आपका, कहे रात को रात।।//1
बुद्धि स्वयं की भी लगा, छोड़़ भेड़ की चाल।
संग काल के तुम चले, तभी गलेगी दाल।।//2
अँधी भक्ति अब छोड़कर, करो स्वयं का मान।
अपने सपने तब खिलें, करो सत्य गुणगान।।//3
राजनीति के खेल में, झूठा सबका जोश।
सोच समझ मतदान कर, इतना रखिए होश।।//4
हम सब सच में चोर हैं, देखो मन में झाँक।
जिसे आइना ले लुभा, ऊँची उसकी नाक।।//5
ख़ुद को करे फ़कीर जो, उसको करो सलाम।
ऐसे अद्भुत संत को, हिमगिरि करे प्रणाम।।//6
टाँग पकड़ जो खींचना, मानव समझे खेल।
उसकी दुनिया में सदा, बनती देखी रेल।।//7
आर. एस. ‘प्रीतम’