दोहावली
जल से जल जैसे मिले, रहे एक तक़दीर।
मिले दूध से दंभ में, भूले निज तासीर।।//1
बहा पसीना कुछ दिया, दान उसी को मान।
कपट कमाई लाख दो, कहते व्यर्थ सुजान।।//2
पीर पराई देखकर, हँसता है शैतान।
नीर नयन का पोंछता, समझ सरिस भगवान।।//3
बड़े बोल हँस बोलकर, बनते नहीं महान।
महा शिला फैंका गिरे, प्रथम धरा पर आन।।//4
समझ समय के ज्ञान में, तालमेल सम्मान।
करे आपको सच कहूँ, वसुधा पर गुणगान।।/5
नशा चीज़ हर का लगे, करता है अपमान।
नशा प्रेम का जो लगे, करे तुम्हें विद्वान।।/6
हुनर एक तुम सीख लो, ध्यान अधिक से मोड़।
सब तारों की शान है, चाँद स्वयं बेजोड़।।//7
आर.एस. ‘प्रीतम’