दोहावली
आज्ञा उनकी मानिये, मिलता जिनसे स्नेह।
फ़सलें महकें हैं तभी, कृपा करे जब मेह।।
लक्ष्य प्रतिज्ञा कीजिये, समझ स्वयं का ज्ञान।
यहाँ असंभव कुछ नहीं, चलो हृदय में ठान।।
यत्न प्रतीक्षा धैर्य से, पूर्ण सभी हों काज।
बीज फले बोया हुआ, पाकर समय लिहाज।।
भार कभी मत समझिये, संकट आए घोर।
रात अँधेरी बीतकर, लाए सुंदर भोर।।
भौतिक चीजें त्याग कर, लगा भक्ति में ध्यान।
परम शाँति मिलती तभी, मिलें तभी भगवान।।
भाषण फूले है वही, दिया नीति अनुरूप।
प्रजा हितैषी कर्म कर, हृदय बसे हर भूप।।
उग्र विचारों से भले, प्रेम भरे दो बोल।
कोयल मिस्री घोलती, बोले उर-पट खोल।।
दर्द हृदय का खिल उठा, बना कवित साकार।
उद्गम गंगा का हुआ, जनु कवि उर के द्वार।।
उष्ण-हृदय को प्रेम का, मिलता नहीं प्रसाद।
नेत्र भरें हों क्रोध से, दूर शाँति की याद।।
सदा योग्यता जीतती, देती है सत्कार।
सच दर्शाता है यही, खिला जलज व्यवहार।।
#आर. एस. ‘प्रीतम
#सर्वाधिकार सुरक्षित दोहे