दोहावली…(११)
मधुर भाव – नैवेद्य ले, चरण नवाऊँ शीश।
वरद हस्त सिर पर धरो, कृपा करो जगदीश।।१।।
चिंता को दिल से लगा, सका न कोई जीत।
घुन बन सत सब लीलती, जीवन जाता रीत।।२।।
मन तक उसकी पैठ हो, दे मत इतनी ढील।
चित कर चिंता चित्त को, लेती जीवन लील।।३।।
जीवन की हर साध में, भरे लक्ष्य ही रंग।
लक्ष्य सधी इक डोर पर, अंबर छुए पतंग।।४।।
साधन बेशक तुच्छ हों, इच्छा-शक्ति बुलंद।
चीरकर घनघोर निशा, बढ़ो काट सब फंद।।५।।
भाग्य भरोसे जो रहें, धरे हाथ पर हाथ।
रूठे उनसे दैव भी, देता कभी न साथ।।६।।
करनी उसकी देखकर, कुछ तो लो संज्ञान।
बिल्ली मूँदे नैन तो, कहें इसे क्या ध्यान ?।।७।।
निष्कंटक आगे बढ़ें, मेटें सभी विरोध।
डग भरने के पूर्व जो, करें लक्ष्य पर शोध।।८।।
ऊँचे जिनके कर्म हैं, ऊँची जिनकी साख।
अमा-तमस को चीरकर, जीते उजला पाख।।९।।
लुढ़का पारा शून्य पर, कुहर-शीत की धूम।
सूरज भी आया मनो, सर्द हिमालय चूम।।१०।।
निर्धन बिलखे भूख से, कौर न आए हाथ।
पंडित मोटी तोंद पर, फेरे सुख से हाथ।।११।।
© डॉ0 सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)
साझा संग्रह “काव्य क्षितिज” में प्रकाशित