दोहरी मानसिकता
ये कैसी दोहरी मानसिकता है ,
भारतीय समाज की ।
पुरुष नौकरी से थक आया है ,
भई ! आराम चाहिए ।
और स्त्री नौकरी से आई है ,
कैसी थकान ! उसे घर संभालना चाहिए ।
बहन और बेटी चाहे मायके में ,
बार बार आती जाती रहे ।
क्यों न हो जी ! उसका घर है ।
और घर की बहु या पत्नी मायके जाना चाहे ,
तो ढेर सारी जिम्मेदारियों में बांध दी जाती है ।
” अभी तो पिछले हफ्ते ही तो मिलके आई हो ,
ऐसी भी क्या बेताबी , महीना तो होने दो ।”
और इसी तरह साल गुजर जाते है ।
बहु या पत्नी मायके जा ही नहीं पाती ।
यहां तक के भैया दूज और रक्षा बंधन पर भी ,
मुश्किल से जा पाती है।
क्या बहु / पत्नी का मायका उसका घर नही है ?
पुरुष हर स्त्री से बात कर सकता है उससे किसी
परिवार की नाक नही कटती ।
एक स्त्री किसी से बात करे तो कलंकनी हो गई ।
आखिर इतना भेदभाव क्यों?