” दोहरा चरित्र “
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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हमारे रंग न्यारे देख लो हमारे ढंग न्यारे देख लो !
कभी हम साधू बनते हैं तो कभी शैतान बनते हैं !!
कभी बापू के चरणों में अपने सर को झुकाते हैं !
कभी गोडसे के मंदिर में हजारों दीपक जलाते हैं !!
संविधान को तार तार करने को आप मचलते हैं !
आंबेडकर की मूर्ति बनाकर जग को दिखाते हैं !!
मोब लिंचिन को जघन्य अपराध लोगों को कहते हैं !
पर खुद मोब लिंचिन करबा के लोगों को मरबाते हैं !!
मंदिर की चर्चा नहीं करने की हम सौगंध खाते हैं !
गिरगिट के रंग बदलकर अपनी शोर्यगाथा सुनाते हैं !!
देशभक्त का नारा देकर अपनी सम्पति बेचते हैं !
स्वाभिमानों को बेचबेचकर अपनी झोली भरते हैं !!
विश्व के पटल पर ग्लोबल वार्मिंग की राग अलापते हैं !
प्लास्टिक तो दूर की बात रही आप जंगल कटबाते हैं !!
अपने पडोसिओं को घृणा करके त्रिष्कार कर देते हैं !
और विश्व के वॉर क्रिमिनल देशों से मित्रता कर लेते हैं !!
हम जब तलक विवादित रंगों में अपने को बदलते रहेंगे !
इतिहास के पन्नों को हम सदैव यूँही धूमिल करते रहेंगे !!
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डॉ लक्ष्मण झा परिमल
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका