दोहरापन
लोगो की चालबाज़िया अब इस कदर हो गयी है ।
लगता है कि मकड़ियाँ जाल बुनने से पहले ही सो गयी हैं ।।
तमाम तरीके हथकंडे अपनाते है लोग।
लगता है कि खुदगर्ज़ीया सिमट कर उन्ही की हो गयी है ।।
तमाम अहम और ढ़ेरो वहम और फिर इनकी शराफ़त का
पैमाना भी उँचा है ।
लगता है मक्कारी को शराफ़त की बाते करते सुबह हो गयी ह।।
लोग इस कदर अपने किरदारो को सिलने लगे है ।
मानो की तमाम फ़रिश्ते उन्ही में मिलने लगे है ।।
बस हर बार उनका चित्र आये अखबार के पन्ने पर।
ईमानदारी चापलूसी के आगे कहीं उलझ के रह गयी है ।।