दोहराऊं इतिहास
दोहराऊं इतिहास
सिलसिला यादों का, तोड़ न पाऊं मैं!!
यादों की गुल्लक को, फोड़ न पाऊं मैं!!
दोहराऊं इतिहास, बात बनाऊं मैं,
मन के टूटे तार,जोड़ नहीं पाऊं मैं।
पोली,चौक-चौबारे खेल रंगीले वो,
संगी-साथी-यार,छैल-छबीले वो ।
खिली धूप घर -आंगन, बगिया,
महकते फूल , बौराई अमिया।
बाबा का दुलार, दादी की फटकार,
मां की आंखों से झर,झर-झर बहता प्यार।
चौपालों के मेले , भूल न पाऊं मैं।
मन के टूटे तार,जोड़ नहीं पाऊं मैं।।……
सिलबट्टे पर बंटती चटनी,ठण्डी रोटी खाती,
हांडी की वो शीतल छाछ, खूब मजे से पीती।
राबड़ी से भरा कटोरा, चटखारे मैं लेती,
बैठ गोद में नानी की, मैं चूंटीया चटकाती।
भोले-भाले नयनों से, मैं सबका मन बहलाती,
चिड़ी-मोर-कोयल की बोली,सबको रोज सुनाती।
मामाजी का प्यार आज भी पाऊं मैं।
मन के टूटे तार जोड़ नहीं पाऊं मैं।।……
गाय-बैल और बछड़ों की,जब टोली घर आती,
घण्टियों की टनन-टनन,हर मन में हर्ष जगाती।
मंदिर में बजते झांझ-नगाड़े, संध्या का होता वंदन,
चिड़ियों की सुन आरती,भोर घिसा करती चंदन।
जीवन के ये सुंदर राग, भूल चुके हैं सारे आज,
सोने जैसा वक्त पुराना,करती हूँ मैं जिस पर नाज।
अपने बच्चों को भी,दिखला पाऊं मैं।
मन के टूटे तार जोड़ नहीं पाऊं मैं।।…..
दोहराऊं इतिहास, बात बनाऊं मैं।।।…..
विमला महरिया “मौज”