” दोस्त “
तुम्हारी दोस्ती
मुझमे दम भारती
उम्मीदों की कमी
कभी नहीं करती
विषम परिस्थितियों में
जब
युद्ध के लिए
टूटे रथ को हाँक लेती हूँ
इस विश्वास से
कि
मेरे रथ के पहिये में
कील की जगह
उँगली है तुम्हारी
जीत जाऊँगी मै
नहीं कोई
शक – शुबहा
की है बारी !!!
स्वरचित एवं मौलिक
(ममता सिंह देवा , 04/08/10 )