दोस्त का प्यार जैसे माँ की ममता
कोरोना का आतंक पूरी दुनिया में पैर पसार चुका था। अमूमन सारे देशों में लॉक डाऊन लग चुका था। लोगों में दहशत का माहौल था। अपने भी परायों जैसा व्यव्हार करने लगे थे। मौत के डर से लोग कुछ ज्यादा ही सतर्क हो गए थे। कोई किसी की मदद के लिए आने को तैयार नहीं था। हर एक बीमार को शक की निगाह से देखा जा रहा था। बहार हर जगह सन्नाटा पसरा हुआ था। केवल पोलिसे वाले ही गश्त लगाते दिख रहे थे। सभी आईटी कंपनियों ने कर्मचारियों को घर से काम करने की अनुमति दे दी थी।
मै भी बैंगलोर में अपने किराये के अपार्टमेंट में अकेला फंसा था। मेरा रूममेट किसी तरह से अपने घर निकल गया था जो की पास में ही था। मै निकल पाता इससे पहले लॉक डाउन लग चुका था। अब बस फ़ोन ही एक सहारा था लोगो तक पहुँचने का। घर पर रोज हालचाल ले लिया करता था, और खुद के भी हालचाल दे देता था। खाली समय मानो काटने को दौड़ता हो। ऐसे शनिवार और रविवार को हम सब दोस्त मिल के घूमने चले जाते थे पर लॉक डाउन के कारण अब घर पर ही बंद थे।
आज मन में आया की चलो घर की सफाई ही करते हैं। शायद इसी से कोरोना कुछ काम हो और बोरियत दूर हो। थोड़ा बहुत नीचे की सफाई करने के बाद मेरी निगाह छत पर लटकते पंखे पर गई जो की काफी गन्दा था। मैंने पास रखे स्टूल को लगाया और उस पर चढ़ गया और पंखा साफ़ करने लगा। स्टूल थोड़ा नीचे था तो मुझे पंजो के बल खड़े होकर पंखे तक पहुंचना पड़ रहा था। किसी तरह से मैंने दो परों को साफ़ कर लिया था और तीसरे वाले को पकड़ कर पंजो के बल खड़े हुस साफ़ कर रहा था। पाता नहीं अचानक क्या हुआ मेरा संतुलन बिगड़ा और मै सीधे नीचे गिर पड़ा। आज शायद मेरा दिन ही ख़राब था। कोरोना के चक्कर में बाहर नहीं जा पा रहा था अब घर में ही चोट खा बैठा। घुटने में काफी तेज दर्द हो रहा था शायद कुछ गलत तरीके से मुड़ गया हो। खड़े होने में भी काफी दिक्कत हो रही थी। कोरोना का समय था तो किसी अस्पताल में जाना भी खतरे से खाली नहीं था। डर के मारे लोगों ने अपने ऑपरेशन तक को कैंसिल कर दिए थे। मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था और दर्द था की परेशान किये जा रहा था।
इस टाइम पर मुझे बस अपने सबसे करीबी दोस्त गौरव की याद आयी जो पास में ही एक दूसरे अपार्टमेंट में रहता था। उसकी शादी अभी चार महीने पहले ही हुई थी और उसकी बीवी उसके साथ ही रहती थी जो उसी के ऑफिस में काम करती थी। मैंने किसी तरह से गौरव को फ़ोन लगाया और पूरी बात बताई। उसने बिना आनाकानी किये मुझे बस उसी अवस्था में लेटे रहने को बोला और जल्द ही आने की बात कही। मै बस लेटा दर्द में तिलमिला रहा था। थोड़ी देर में मेरे घर के दरवाजे पर दस्तक हुई। मैंने किसी तरह जमीन पर घिसट घिसट के दरवाजा खोला। सामने गौरव खड़ा था। उसने बोला की जल्दी से अंदर चलो मै छुपते छुपाते आया हूँ। किसी ने देख लिया तो कम्प्लेन हो जाएगी।
गौरव ने मुझे सहारा देकर बिस्तर पर लिटाया। उसके अंकल एक डॉक्टर थे तो उसने उन्हें कॉल लगाई और कुछ परामर्श किया। उसने मेरे पैर को अलग अलग जगह पर दबाकर देखा और थोड़ा पैर भी मुंडवाया। फिर उसने कहा की हड्डी नहीं टूटी है बस लिगमेंट टियर हुआ है और मुझे २-३ दिन बहुत सावधानी से निकलना होगा। मेरे पास तो कोई था भी नहीं जो २-३ दिन मदद करता। मुझे इस टाइम माँ की बहुत याद आ रही थी।
शाम हो चुकी थी और बाहर अँधेरा हो गया था। कई बार गौरव की बीवी का फ़ोन आ चूका था। शायद उसे इस समय उसका घर से बाहर रहना पसंद नहीं आ रहा था। पर फिर भी उसने मुझे चाय बना के पिलाया और मेरे घुटने की सिंकाई के लिए पानी गर्म करके दिया। मैंने गौरव को अब घर जाने को बोला क्न्योकि अभी फिर से उसकी बीवी का फ़ोन आ रहा था जिसे गौरव ने नहीं उठाया।
थोड़ी देर रुक के गौरव मेरे रूम से जा चूका था और मै अकेले बिस्तर पर पड़ा सोच में डूबा था। घुटने का दर्द अब कुछ कम था पर खड़े होने की हिम्मत नहीं हो रही थी। रात के दस बज चुके थे और मुझे कुछ भूख सी लग रही थी। मुझे रह रह कर घर की याद आ रही थी की काश इस समय मै घर पर होता। माँ पिताजी के साथ होता तो कोई चिंता नहीं होती। वो मेरी देखभाल अच्छे से करते। दोस्त आखिर दोस्त ही होता है। वो कितना साथ देगा। उसकी भी अभी नयी नयी शादी हुई है। उसे अपनी बीवी को वक़्त देना पड़ता है। हाँ अगर अकेला होता तो मै बोल देता रुकने को। उसकी बीवी भी अभी मुझे अच्छे से नहीं जानती है।
भूख ने अब कुछ जोर पकड़ लिया था। और मेरे सामने उठने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था। मै लाचार निगाँहो से किचन की तरफ देख रहा था की काश माँ होती तो उसे अपने मन पसंद आलू के पराठे बनवाता। तभी दरवाजे पर फिर से दस्तक हुई। मुझे लगा इस समय कौन आ गया। कंही किसी ने गौरव को जाते देख लिया हो और गॉर्ड को खबर कर दिया हो पूछने के लिए। मैंने फिर से किसी तरह दरवाजा खोला।और दरवाजा खोलते ही मै अवाक् रह गया।
सामने गौरव और उसकी पत्नी खड़े थे। उनके हाथ में बैग थे। मै समझ नहीं पाया की क्या हुआ हैं गौरव ने बोला की वो दोनों अब २-३ दिन मेरे साथ रहेंगे जब तक मेरा पैर थोड़ा ठीक नहीं हो जाता। उसकी बीवी ने मुझसे बोला की वो गरम गरम आलू के पराठे बना के लायी हैं मेरे लिए। मेरी आँखों में अब ख़ुशी के आंसू थे और मुझे उन दोनों में अपनी माँ और पिता जी नजर आ रहे थे।