दोस्तों,
दोस्तों,
एक ग़ज़ल/नज़्म आपकी मुहब्बतों के हवाले।
ग़ज़ल/ नज़्म:- ज़मीर
कब गिर जाऐ आदमी ज़मीर से, पता नही चलता,
मौत कब कैसे आ जाऐ समीर से पता नही चलता।
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दुनिया जालिम है कब मदद का मेहनताना मांग ले,
क़त्ल किस का होगा, शमशीर से पता नही चलता।
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हार होगी या जीत ये पता रणभूमि ही बताऐगी हमें,
राजन बेताज कब होगा वज़ीर से पता नही चलता।
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पूछ के देखो बताऐगा ग़रीब,कहाँ महल अमीर का,
है घर किधर ग़रीब का ये अमीर से पता नही चलता
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हैसियत कपड़ो से देखना, ये गलतफ़हमी है हमारी,
कितनी है दौलत पास, फ़कीर से पता नही चलता।
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कै़द है “जैदि” क़फ़स में कब तलक रहेगा पता नही,
हौसलों में कितनी जान जंजीर से पता नही चलता।
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मायनें:-
समीर:-हवा
शमशीर:-तलवार
कफ़स:-पिजंरा
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”