“दोस्तों की महफिल”
यारों की महफिल का तो अलग ही होता है अहसास,
यहाँ तो सबके मिज़ाज होते हैं बिंदास
लौट जाते हैं हम अपने पुराने दिनों की यादों में
क्योंकि वही दिन तो थे,बहुत खास।
भूल जाते हैं उम्र की सीमा को हम
जब होते हैं हमारे वो दोस्त साथ
बचपन कावही खिल खिलाना
, यौवन का वही इठलाना
अदाओं को यूँ दर्शाना
पुन: जीवित होता है यहाँ आज ।
मिल लो जब दोस्तों से, तो होता है खुशी का आगाज
फिर जी लेते हैं. इन पलो को अगली मुलाकात तक,
क्योंकि ये पल होते ही है बहुत खास
चलता रहे थे मुलाकातों का सिलसिला यूँ ही
क्योंकि ये मुलाकातें ही तो कराती हैं
खुशी का आभास ।
डॉ. कामिनी खुराना (एम.एस., ऑब्स एंड गायनी)