ग़ज़ल।दोस्तों का जिंदगी भर दाखिला बढ़ता रहा ।
———–फ़ासला बढ़ता रहा ————
दोस्तों का ज़िन्दगी भर दाख़िला बढ़ता रहा ।
दास्ताँ सुनकर वफ़ा की हौसला बढ़ता रहा ।।
फ़ायदे की लाख़ कोशिश मे गवाँ दी जिंदगी ।
उम्रभर बस दर्द का सिलसिला बढ़ता रहा ।।
हो गये सब ख़ाक अरमां छा गये बनके धुआँ ।
गर्दीशे तूफ़ान का इक ज़लज़ला बढ़ता रहा ।।
मुजरिमों के साथ मुज़रिम आईना बारूद का ।
हमवफ़ा की आरजू रख जो मिला बढ़ता रहा ।।
बावफ़ा की साख़ पर फिर आतिशों के ढ़ेर से ।
ज़ल गयी ज़ागीर दिल की मनचला बढ़ता रहा ।।
आफ़तों से बच नही पायी है दुनियां ये कभी ।
वक़्त दर तारीख़ दर फिर ग़िला बढ़ता रहा ।।
मिट गये होते जहां के फ़लसफे रकमिश सभी ।
ज़िन्दगी से मौत का बस फ़ासला बढ़ता रहा ।।
राम केश मिश्र