“ दोस्ती संभाल के “
“ दोस्ती संभाल के “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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अभी -अभी तो
दोस्त बने हो ,
ना परिचय ना
कुछ बात हुयी !
एक दूजे को
समझ ना पाए ,
फिर कैसी यह चाह जगी ?
अभी -अभी तो
दोस्त बने हो ,
ना परिचय ना
कुछ बात हुयी !
एक दूजे को
समझ ना पाए ,
फिर कैसी यह चाह जगी ?
दो प्यार के शब्द
ना बोल सके ,
ना उनके दिल को
जान सके !
उनकी चाहत
की परवाह नहीं ,
उनकी व्यथा को ना
पहचान सके !!
कभी अनुदानों को
बतलाकर के
लोगों से ही
इसकी मांग हुयी !
अभी -अभी तो
दोस्त बने हो ,
ना परिचय ना
कुछ बात हुयी !!
अभी -अभी तो
दोस्त बने हो ,
ना परिचय ना
कुछ बात हुयी !
एक दूजे को
समझ ना पाए ,
फिर कैसी यह चाह जगी ?
जब याचक ही
सिर्फ बनना था ,
तो मित्र बनना
बहना था !
दिल जोड़ने की
बात कहाँ ?
यह तोड़ने का
ही निशाना था !!
शिष्टाचार को
भूल -भाल कर
अशिष्टता की
ही बात हुयी !
अभी -अभी तो
दोस्त बने हो ,
ना परिचय ना
कुछ बात हुयी !!
अभी -अभी तो
दोस्त बने हो ,
ना परिचय ना
कुछ बात हुयी !
एक दूजे को
समझ ना पाए ,
फिर कैसी यह चाह जगी ?
हमने ना कभी
उनको देखा ,
सिर्फ तस्वीरों में
उनको परखा !
धीरे -धीरे बातों के
क्रम में चल कर ,
लोगों के दिल में
उतरना सीखा !!
अपना परिचय
छोड़ छाड़कर ,
लोगों की
तहकीकात हुयी !
अभी -अभी तो
दोस्त बने हो ,
ना परिचय ना
कुछ बात हुयी !!
अभी -अभी तो
दोस्त बने हो ,
ना परिचय ना
कुछ बात हुयी !
एक दूजे को
समझ ना पाए ,
फिर कैसी यह चाह जगी ?
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत