दोस्ती में कचरा !
वो कोन था?
राजेश ने सहमकर पूछा।
“वो..वो दोस्त है।”
“क्या सच में वो दोस्त ही है?”
“लोगो के दिमाग में ना जाने क्या कचरा भरा होता हैं। जब देखो उल्टा सीधा सोचने लगते है। ऐसा वो लोग करते है, जिनकी सोच छोटी और घटिया होती है।”
नवलिका ने ये कहकर जैसे राजेश के मुँह पर ताला सा जड़ दिया था।
“हम्म” ।
राजेश ने कातर भाव से सहमत होते हुए नीचे गर्दन कर ली। यह दीगर है कि वह अंदर से जल रहा था, पर खुद को ये दिलासा दे के रह गया कि शायद वो ही गलत है।
अपनी निजी जिंदगी की भागदौड़ में राजेश अक्सर नवलिका से कम ही मिल पा रहा था। कुछ ही दिन बीते थे।
यह सर्दी की एक सर्द शाम थी। राजेश किसी पगडंडी के सहारे चला जा रहा था।
फिर जो देखा ..उसकी आँखे पथरा गयी, पैरों तले जैसे जमीन खिसक गई। उसके सारे संस्कार बेमानी हो गए..
नवलिका और वही शख्श एक दूसरे के बाहुपाश में थे। कभी नवलिका उसके गाल सहलाती.. तो कभी वह शख्श नवलिका को आपत्तिजनक जगह छूता।
कुछ देर बाद वह शख्स जा चुका था। नवलिका अपने रास्ते हो चली थी.. एक बार फिर राजेश न चाहते हुए भी उसके सामने आया.
“ये सब क्या था नवलिका?”
“ही ही ही ही……जो तुमने देखा वही था”
नवलिका की हँसी में अजीब सी उन्मुक्तता थी। खुलापन था। नवलिका की हँसी राजेश के लिए किसी तमाचे के प्रहार से कम साबित नही हुई। उसकी ख़ुशी के सही मायने जैसे राजेश को अब पता चले थे।
राजेश की जुबान पर जैसे फिर ताला पड़ चुका था। वह कुछ नही बोल पाया।
नवलिका अपनी राह चल पड़ी थी..राजेश के पैर उसे आगे धकेलने की बजाय पीछे धकेल रहे थे. एक सवाल उसके दिमाग को छलनी किये जा रहा था..
‘कि आखिर कचरा किसके दिमाग में था??’
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– नीरज चौहान