दोस्ती का कर्ज
रामपुर में अमर नाम का एक सीधा-सादा, होनहार लड़का रहता था। एक दिन विद्यालय से लौटते समय रास्ते में उसने देखा कि कुछ बच्चे एक बंदर के पीछे पड़े हैं। उसे चिढा रहे हैं। कोई उसे पत्थर से मार रहा है, तो कोई डंडे से। अमर को यह अच्छा नहीं लगा। उसने बच्चों को समझाया कि वे लोग बंदर को न छेड़ें, पर बच्चे मानने की बजाय अमर से ही झगड़ने लगे। लेकिन अमर भी ताकत व फूर्ती में किसी से कम नहीं था। उसने लड़कोें को मार भगाया और घायल बंदर को घर लाकर उसकी मरहम पट्टी करायी।
दिन बीतते देर नहीं लगतीं। अब वह बंदर पूरी तरह से पालतु बन गया था। अमर ने उसका नाम ‘बजरंगी’ रखा। कुछ ही दिनों में अमर और बजरंगी में गहरी दोस्त हो गयी। अमर अपना अधिकांश समय बजरंगी के साथ बिताता। दोनो एक साथ खेलते। रात को जब अमर अपनी चारपाई पर सो जाता, तो बजरंगी भी चारपाई के नीचे सो जाता। बजरंगी बहुत ही कम सोता था। एक तरह से वह घर का पहरेदार बन गया था। आँगन में अकसर टहलता रहता।
एक रात जब घर के सब लोग सो गये तो घर के बाहर किसी के चलने-फिरने और ठक-ठक की आवाज सुनकर बजरंगी के कान खडे़ हो गए। वह खतरे की आशंका जान छत पर लटक रहे पंखे पर चढ़़ गया।
कुछ समय बाद उसने देखा कि दीवार फाँंदकर एक चोर घर में घुस आया है। चोर के दीवार फाँदने की आवाज से अमर की आँख खुल गयी और वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा ‘‘चोर-चोर’’।
चोर ने लपक कर अमर का मुँह बंद कर दिया और बन्दुक की नाल उसके कान से सटाकर कहा- ‘‘खबरदार ! मुँह से एक भी आवाज निकली तो बंदुक की छः की छः गोलियाँ तुम्हारे सिर में होंगी।’’
बजरंगी ने यह देखा तो उसका कलेजा मुँह को आ गया। हाय ! क्या उसकी आँखों के सामने ही उसके दोस्त को मार दिया जाएगा। उस दोस्त को जिसने कभी उसे दुष्ट बच्चों के हाथों मरने से बचाया था। नहीं, बजरंगी के जीतेे-जी उसके दोस्त का बाल भी बाँका नहीं होगा। चाहे इसके लिए उसे अपनी जान ही क्यों ने गंवानी पडे़। दोस्ती का कर्ज उतारने का समय आ गया है।‘‘ बजरंगी ने सोचा।
उसने सोच लिया था कि उसे क्या करना है।
वह पंखे से बिजली की फूर्ती से कूदा। चोर इस अचानक हुए आक्रमण को समझ न सका और बंदूक की छः की छः गोलियाँ बंदर के पेट में मार दी। उसके मुँह से उफ्फ तक न निकली। उसकी बेजान शरीर अब भी चोर को जकडे़ हुए थी।
बंदुक चलने की आवाज सुन कर अमर के माता-पिता और पड़ोसी भी जाग गए। पड़ोसियों ने चोर को अपनी गिरफ्त में ले लिया।
अमर बजरंगी की ओर झपटा। बजरंगी की लाश को रोते-रोते अमर गोद में उठाकर सहलाने लगा।
अमर की आँखों में आँसू थे, परंतु बजरंगी की आँखों में चमक थी।
उसने अपनी दोस्ती का कर्ज चुका दिया था।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़