दोस्ती और कर्ण
दोस्ती और कर्ण
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दोस्ती की लाज बचाने को कर्ण ,
कौरवों का साथ निभाया था।
सत्य क्या है जानता था कर्ण ,
पर असत्यपथ चलना स्वीकारा था।
अधर्म को मूक देखना ,
धर्महित कभी नहीं होता।
पर दोस्ती की खातिर कर्ण ,
कर्मफल को स्वीकारा था।
कृष्ण को वो अचंभित कर डाला,
टूटा जब रथ का पहिया था।
मारा गया जब निहत्था था कर्ण,
दोस्ती का कृतिमान रच डाला था।
सूर्यपुत्र कर्ण ऐसा दानी नही जग में,
कवच कुंडल भी दान कर डाला ।
दोस्ती की लाज बचाने की समय आई ,
अर्जित पुण्य भी अर्पित कर डाला ।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि –०४ /११/२०२२
कार्तिक,शुक्ल पक्ष,एकादशी, शुक्रवार
विक्रम संवत २०७९
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