दोस्ती -ईश्वर का रूप
ईश्वर का रूप – दोस्त
डॉ तरुण एव डॉ सुमन लता की सगाई हुई और शादी सगाई में तो डॉ उत्कर्ष आया लेकिन व्यस्तताओं के कारण शादी में नही आ सका लेकिन उसके मन मे कोई मलाल नही था वह शिक्षित एव समय के साथ चलने वाला यथार्त व्यक्तित्व का इंसान था ।
उसने लता को अच्छे दोस्त के रूप में स्वीकार कर लिया अपने जीवन उद्देश पथ पर निकल पड़ा प्रशिक्षण के दौरान आंध्र प्रदेश की लड़की मोनिका भी भारतीय प्रशानिक सेवा के प्रशिक्षण में थी और भी लड़कियां भी थी लेकिन उत्कर्ष को अच्छी लगती और मोनिका भी उत्कर्ष से अच्छी खासी प्रभावित रहती ।
दोनों प्रशिक्षण के दौरान मिलने का अवसर तलाशते पहले तो उत्कर्ष ने मोनिका पर कोई विशेष ध्यान नही दिया लेकिन जब डॉ लता ने डॉ तरुण से शादी कर लिया तबसे वह भी गम्भीरता से मोनिका के व्यवहार बातों को स्वीकार करने लगा ।
डॉ लता से सम्बन्धो के सोच संबंधों का आयाम बदलने के बाद उसके पापा ने कहा रखा था कि उत्कर्ष तुम अपने पसंद की लड़की बता दो और इस बार बताना तो ऐसी लड़की बताना जो तुम्हे प्यार करती हो ना कि तुम्हे दोस्त समझने लगे ।
तब भी उत्कर्ष ने कहा पापा लता के विषय मे मुझे गलतफहमियां थी बावजूद वह बहुत अच्छी लड़की है तरुण बहुत सौभगशाली है जो उससे डॉ लता प्यार करती है और शादी किया है डॉ लता के विषय मे नज़रिए में कोई परिवर्तन मेरा नही हुआ है वह जहां भी रहे खुश रहे मैं अपनी किस्मत पर इस बात का फैसला छोड़ देता हूँ ।
मोनिका उत्कर्ष को अच्छी लगने लगी थी वह मोनिका से ढेर से बात करता रहता लेकिन उसने कभी डॉ लता के विषय मे नही बताया प्रशिक्षण समाप्त हुआ मोनिका को केंद्र शासित राज्य कैडर मिला वही उत्कर्ष को राजस्थान कैडर दोनों की पदस्थापना अपने अपने राज्यो में हुई उत्कर्ष की पोस्टिंग जयपुर तो मोनिका की दिल्ली कैडर में दिल्ली में पोस्टिंग हुई ।
उत्कर्ष जब भी घर आता मोनिका से अवश्य मिलता दोनों में सम्बन्धो का स्तर इतने गहरे हो गए थे जब उत्कर्ष जयपुर में रहता तब वह उत्कर्ष के मम्मी पापा के साथ उनके घर अक्सर आती जाती रहती और ऐसे रहती जैसे वह उस घर की बेटी बहु हो।
उत्कर्ष के मम्मी पापा को मोनिका बहुत अच्छी लगती मोनिका के मम्मी पापा सत्यम रेड्डी एव पत्नी संध्या रेड्डी के साथ बेटी मोनिका से मिलने दिल्ली आए मोनिका अपने मम्मी पापा को उत्कर्ष के मम्मी पापा ज्योति आंटी एव जयंत पापा से मिलाने ले गयी वह सीधे उत्कर्ष के घर पहुंची और अपनी मम्मी एव पापा संध्या एवं सत्यम का परिचय उत्कर्ष के मम्मी पापा से कराया और खुद उनके किचन में होम मेट को नाश्ता आदि बनाने का निर्देश देने चली गयी ।
जब मोनिका को इस कदर उत्कर्ष के परिवार से घुला मिला देखा तो सत्यम एव संध्या को यह समझते देर नही लगी कि उनकी बेटी ने अपने भविष्य का घर तलाश लिया है फिर भी वो खुद भी इत्मिनान कर लेना चाहते थे की उत्कर्ष का परिवार समाज उनके स्तर का है या नही क्योकि वे आंध्रा के विजयवाड़ा के बहुत संभ्रात एव राज परिवार से सम्बंधित थे ।
सत्यम की बात जयंत से और ज्योति की बात संध्या से दोनों तरफ सिर्फ अपने खानदान रसूख की चर्चाएं चल रही थी जयंत ने बातों ही बातों में बताया कि वह विजयवाड़ा के कमिश्नर एव जिलाधिकारी दोनों ही दो टर्म में रहे है और सत्यम के परिवार को जानते है उन्होंने स्वंय ही सत्यम अपने विषय मे बताते वह बता दिया क्योकि ज्यो ही सत्यम ने बताया कि वह विजयवाड़ा के राज परिवार से सम्बंधित है जयंत ने अपने पोस्टिंग के दौरान जानकारी सत्यम के परिवार के विषय मे थी बताई दोनों परिवारों में कुछ ही देर में इतनी नजदीकियां हो गयी जैसे वर्षो से एक दूसरे से संबंधित हो औपचारिकता आदि के बाद सत्यम ने कहा कि मेरी एक बेटी मोनिका एव चार बेटे है बहुत लाडली है उसने हम लोंगो को बता दिया है कि वह उत्कर्ष से प्यार करती है और उससे शादी करना चाहती हैं अब आप बताये आपका नीर्णय क्या है ।
जयंत ने भी कहा मुझे मोनिका के घर मे स्थाई तौर पर आने का इंतजार है लेकिन एक समस्या हो सकती है आपके पक्ष से आप आंध्रा के संभ्रांत राजपूत परिवार से सम्बंधित है और हम लोग विशुद्ध रूप से आदिवासी यानी जनजातीय है क्या आपका समाज इस वैवाहिक संबंध को स्वीकार करेगा सत्यम ने कहा कि जब लड़के लड़की ने निर्णय कर लिया है तो फिर हमें क्या आपत्ति हो सकती हैं?
सत्यम सांध्य ने बेटी मोनिका की शादी उत्कर्ष से निश्चित कर दिया शादी के दिन तरुण की शादी की तरह महादेव परिवार एव महाकाल युवा समूह के साथ साथ देव जोशी जी ,त्रिलोचन महाराज दीना जी सनातन दीक्षित आदि आमंत्रित थे और आये भी थे।
सत्यम रेड्डी का भी कुनबा रिश्ता ऊंचा एव बड़ा था सभी अपनी मोनिका बिटिया की खुशी में शरीक होने आए थे विवाह में सत्यम रेड्डी के पिता मोनिका के दादा सीवन रेड्डी भी पधारे थे पुराने राजघराने की शान शौकत के साथ।
जब उन्हें पता चला कि उत्कर्ष का परिवार आदिवासी जनजातीय है तो उन्होंने हंगामा खड़ा कर दिया तब देव जोशी सनातन दीक्षित सतानंद आदि ने उन्हें बताया कि आदि वासी समाज मूलतः वनों में ऋषि महर्षियों के साथ ही रहता आ रहा है अतः जनजातीय को निम्न समझना बहुत बड़ी भूल होगी भगवान राम को जब वनवासी समाज का याथार्त उनके पराक्रम पुरुषार्थ का पता चौदह वर्ष के वनवास के दौरान चला और उनके साथ रहे जब लौट कर आये तो ब्रम्ह स्वरूप भगवान के रूप में सबरी के बेर खा कर उन्होंने आदिवासियों को महिमा मंडित किया ।
आदिवासियों से ही सृष्टि का शुभारंभ है अतः आप व्यर्थ की बातों में ना पड़ते हुये इस उत्कर्ष के रिश्ते को जीवन समाज के उत्कर्ष का रिस्ता मानकर स्वीकार करें उत्कर्ष की शादी की सारी जिम्मेदारियों का निर्वहन डॉ लता एव डॉ तरुण ने अपने कंधों पर उठा रखी थी बड़े धूम धाम से मोनिका उत्कर्ष की शादी हुई।
उत्कर्ष और मोनिका हनीमून के लिए थाईलैंड मलेशिया सिंगापुर कंबोडिया मारसिस इंडोनेशिया श्रीलंका आदि देशों का महीनों तक घूमते रहे उस समय हनीमून का प्रचलन ही भारतीय समाज मे नही था तब उत्कर्ष और मोनिका ने हनीमून में इतने देशों को घूमा लौट कर दोनों अपनी अपनी जिम्मेदारियों को संभालने लगे अब मोनिका दिल्ली में उत्कर्ष के घर ही रहती थी और घर की पूरी जिम्मेदारियों का निर्वहन करती थी ।
जब कभी छुट्टी मिलती उत्कर्ष स्वय दिल्ली आता जयंत और ज्योति को तो जैसे मोनिका के रूप में जहां की सबसे बड़ी दौलत मिल गयी है पूरे घर मे खुशियो का वातावरण था।
तरुण और डॉ सुमन लता की शादी के पूरे पांच वर्ष हो चुके थे वह माँ बनने वाली थी सब कुछ नार्मल चल रहा था डॉ लता की डिलीवरी चार माह बाकी थे तभी एक दिन फोर्टिस में ही अचानक बेहोश होकर गिर पड़ी तरुण को जब पता लगा भागा भागा फोर्टिस गया और पत्नी के इलाज के विषय मे जानने की कोशिश करने लगा फोर्टिस में अच्छे से अच्छे चिकित्सक थे और मामला भी एक डॉक्टर का था एव एक डॉक्टर की पत्नी का था एव फोर्टिस के डॉक्टर का था अतः किसी स्तर पर कोई कोताही नही बरती जा सकती थी ।
डॉ लता की गहन जॉच की गई और पाया गया का हार्ट वाये की जगह दाहिने है और उसमें भी प्रॉब्लम है जब वह पुणे मेडिकल कॉलेज में पढ़ती थी उसने अपने हार्ट दाहिने होने के संबंध में विशेषज्ञों से परामर्श किया था उस समय उत्कर्ष भी साथ था तब डॉक्टरों ने बताया था कि कोई विशेष परेशानी की बात नही है ऐसा कभी कभी कुछ इंसानों में पाया जाता है यह बात तरुण को भी लता ने बता रखी थी ।
डॉक्टरों ने डॉ सुमन लता की गंभीरता से जांच किया तो पाया कि लता क्रॉनिक कार्डियो पेशेंट तो है ही साथ ही साथ वह ब्लड कैंशर से भी ग्रस्त है जबकि वह खुद भी सफल कार्डियोलाजिस्ट थी।
डॉ तरुण के पैर से जैसे जमीन खिसक गई हो उंसे ईश्वर बाबा की याद आयी जिसने कह रखा था कि तुम दोनों ही स्वस्थ रहोगे तब कैसे सम्भव है कि लता का बचना असम्भव हो लता की डिलिवरी में मात्र कुछ ही महिने का समय बाकी था ।
डॉक्टरों के अनुसार यदि डिलिवरी होगी तो या तो बच्चा रहेगा या जच्चा डॉ तरुण के लिए बहुत असमंजस की स्थिति बन गयी उंसे समझ मे नही आ रहा था कि वह क्या करे माँ डॉ तांन्या स्वय एक डॉक्टर थी तरुण भी डॉक्टर था और सर्व सुविधाओं से सम्पन्न परिवार लेकिन असहाय करे भी तो क्या करे ।
डॉ लता की प्रैग्नेंसी का एबॉर्शन भी बहुत खतनाक था और मृत्यु को दावत देना था डॉक्टरों ने लता से ही पूछा डॉक्टर हम लोंगो को क्या करना चाहिये तब डॉ लता ने बताया कि उत्कर्ष को बुला लीजिये उसने मेरे दाहिने दिल के सम्बंध में बहुत डिस्कशन किया था पूरे मेडिकल कॉलेज के विशेषज्ञों से विराज एव तांन्या बेटे तरुण एव बहु लता को समझाते रहते तरुण ने मोनिका के माध्यम से उत्कर्ष को बुला लिया ।
उत्कर्ष आया और उसने तरुण एव तांन्या की उपस्थिति में लता के स्वास्थ के विषय मे मेडिको लैंग्वेज में ही डिस्कशन किया और लता को इलाज हेतु अमेरिका ले चलने की बात कही तुरंत विराज एव जयंत के प्रभाव प्रयास से पासपोर्ट विजा तीन लोंगो का बन गया तीनो ही डॉक्टर थे डॉ सुमन लता जो स्वय बीमार थी डॉ उत्कर्ष जो बेहतरीन कार्डियोलोजिस्ट था डॉ तरुण जो स्वय में एक बहुत अच्छा पेद्रीयट्रिक था ।
तीनो अमेरिका के मशहूर हॉस्पिटल पहुंचे पूरी मेफिकल रिपोर्ट मौजूद थी वहां जो कार्डियोलोजिस्ट थे वो डॉ उत्कर्ष को ही अपना गुरु मानते थे जब उनको पता लगा कि डॉ उत्कर्ष ही पेशेंट के साथ आये है तब उन्होंने डॉ उत्कर्ष से तरुण के सामने ही कहा कि यह प्रॉब्लम तो आप इंडिया में भी सॉल्व कर सकते है उत्कर्ष ने कहा (डॉ जूलियस डॉ लता आलसो क्रोनिक पेशेंट ऑफ रिकेमिका एंड सी इस प्रैग्नेंट एंड ओनली थ्री मंथ रेस्ट टू मेच्योर द प्रैग्नेंसी थेएर इज नो टाइम )
डॉ जुलियस ने कहा कि मैरो ट्रांसप्लांट करना आवश्यक होगा ट्रांसप्लांट के डेढ़ माह बाद रेस्पॉन्स चेक करने के उपरांत ही हार्ट सर्जरी की बात सोची जा सकती है लेकिन मैरो देगा कौन? आप और डॉ तरुण दो ही लोग हो और दोनों में किसी का मैरो मैच नही हुआ तब क्या करेंगे ?
तब मेडिकल साइंस हार जाएगा तरुण ने कहा नही डॉ जुलियस जहां मेडिकल साइंस समाप्त होता है वही से भारतीय धर्म दर्शन शुरू होता है आप विल्कुल मेरा मैरो मैच करे और यदि डॉ उत्कर्ष अनुमति दे तो उनका मैच करे डॉ जूलियस ने डॉ तरुण एव डॉ उत्कर्ष का मैरो मैच कराने के लिए सेम्पल लिया और मैच कराया सिर्फ उत्कर्ष का मैरो ही मैच हो सका।
मैच होने के बाद डॉ उत्कर्ष ने मैरो ट्रांसप्लांट की अनुमति दे दिया और डॉ सुमन लता का मैरो ट्रांसप्लांट हुआ डॉक्टरों ने चैन की सांस तब लिया जब डॉ सुमन लता की बॉडी प्रॉपर रेस्पॉन्स करने लगी ठीक डेढ़ महीने बाद डॉ लता ब्लड कैंशर की प्रॉब्लम से ठीक होने लगी ।
अब नियमित जांच में उनके सभी आरग्रेन्स ठीक से कार्य करने लगे डॉक्टर उनके हार्ट सर्जरी के लिए डॉ उत्कर्ष से परामर्श करके हार्ट सर्जरी डॉ उत्कर्ष की देख रेख में किया जो सफल रहा ठीक तीन माह बाद डॉ सुमन ने सीजर द्वरा एक बहुत खूबसूरत मेल चाइल्ड को जन्म दिया ।
छ माह अमेरिका में रहने के बाद डॉ उत्कर्ष डॉ सुमन लता और डॉ तरुण तीन से चार होकर लौट आये डॉ सुमन के बेटे का नाम रखने को लेकर विराज और तांन्या ने एक पार्टी रखी जो वास्तव मे डॉ सुमन लता के स्वस्थ होने के उपलक्ष्य में रखी गयी थी डॉ उत्कर्ष एव मोनिका जयंत ज्योति एव बड़े बड़े डॉक्टर आये थे मेडिकल साइंस के चमत्कार के साक्षात डॉ लता को देखने शुभकामनाएं देने साथ ही साथ महाकाल युवा समूह एव महादेव परिवार देव जोशी त्रिलोचन महाराज सतानंद आशीष सभी इस शुभ अवसर पर पधारे थे ।
डॉक्टरों का मत था ईश्वर भगवान नाम की चीज दुनिया मे नही होती है तब विराज ने कहा नही ईश्वर सत्य है हम उसे पहचान नही पाते वह हर नेक नियत इंसान का दोस्त हमसफ़र है और आवश्यकता पड़ने पर किसी न किसी रूप में आता है जब तरुण को ओंकारेश्वर में कोबरा ने डसा तव वह आशीष के रूप में आया दोस्त हमसफ़र बनकर जब तरुण ऋषिकेश गया तब ईश्वर स्वंय ईश्वर बाबा बनकर आया और अब वह डॉ उत्कर्ष के रूप में आया है ।क्यो तरुण ?
तुम तो इन सभी घटनाओं के मुख्य पात्र रहे हो क्या यह सच्चाई नही है ?
तरुण बोला हा पापा ईश्वर वहां अवश्य आता है जहां इंसान कि हद समाप्त हो जाति है और इंसान सब कुछ ईश्वर पर छोड़ देता है सभी ने पिता पुत्र के जीवन दर्शन की भारतीयता की वास्तविकता को साफ निष्पक्ष निष्पाप मन से स्वीकार किया।
सुमन बोली पापा अपने ही कहा है जब इंसान हार जाता है तो ईश्वर स्वंय किसी न किसी रूप में सामने खड़ा होता है ईश्वर बनकर मेरे लिए उत्कर्ष ही ईश्वर बनकर आया जिसने मुझे एव आपके कुल दीपक को जिंदगी दी है अतः मेरे और तरुण के बच्चे का नाम उत्कर्ष होगा ।
उत्कर्ष मेरा सबसे नजदीक का दोस्त है और उसने साबित भी कर दीया है कि वह सच्चा दोस्त ईश्वर के रूप जैसा है मेरा बेटा मेरे घर आपके घर मे उत्कर्ष के नाम से बुलाएंगे उत्कर्ष जीवन के सबसे अच्छे दोस्त के रूप में सामने रहेगा और वास्तव में उत्कर्ष के साथ बिताए बहुमूल्य समय सदा के लिए अविस्मरणीय विश्वास दोस्ती के रिश्ते की पवित्रता बनकर सामने रहेगा।
डॉ उत्कर्ष मोनिका एव तांन्या विराज डॉ तरुण सबकी जयंत ज्योति सबकी आंखे नम हो गयी तभी डॉ उत्कर्ष बोल उठा खुशी के मौके पर आंसुओ का क्या काम दोस्तो के नाम जीवन का लम्हा लम्हा शाम माहौल पुनः खुशनुमा हो गया ।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीतांबर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।