दोष दृष्टि क्या है ?
दोष दृष्टि का तात्पर्य है किसी व्यक्ति , वस्तु या स्थान में दोष देखने की आदत । दोष दृष्टि एक तरह की बीमारी है। यह दृष्टि दोष से अलग है। यह बीमारी प्रायः कुपढ़ / अनपढ या अपरिपक्व लोगों में होती है । अनपढ़ या सुशिक्षित व्यक्तियों में यह बीमारी नहीं होती है । अनपढ़ मान लेता है कि उसे पता नहीं है और सुशिक्षित को पता होता है कि सही क्या है। अतः वह त्रुटियों के प्रति उपेक्षा भाव रखता है । लेकिन कुपढ / अनपढ़ या अपरिपक्व व्यक्ति ” सुपीरियारिटी कांपलेक्स ” से ग्रस्त होता है । वह हमेशा ऐसे अवसरों की तलाश में रहता है जिससे वह साबित कर सके कि वह अन्य लोगों से श्रेष्ठ है। इसीलिए वह राह चलते लोगों में दोष ढूंढता रहता है । किसी में दोष मिल जाए तो उनका ढिंढोरा पीटता हुआ चलता है । उसका मानना है कि ऐसा करने से लोग उसकी विद्वता का लोहा मान लेंगे । वह संगमरमर से बने भवन में घुसेगा तो उसकी दृष्टि भवन की दिव्यता पर केंद्रित न होकर दीवार पर पड़े किसी काले धब्बे पर केंद्रित हो जाएगी । वह किसी तीर्थ स्थान पर जाएगा तो वहां की आध्यात्मिक दिव्यता का अनुभव न करके वहां पड़े कचरे पर अपना ध्यान केंद्रित करेगा । बाज़ार में जाएगा तो जगमगाती दुकानों के शोकेस में सजी वस्तुओं के बजाय बोर्ड पर लिखे शब्दों की त्रुटिपूर्ण वर्तनी पर उसका ध्यान केंद्रित हो जाएगा । दूसरों पर अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने के उद्देश्य से वह ऐसी ग़ल्तियों का अपने मोबाइल से फोटो लेकर उन्हें विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर पोस्ट करेगा । इसके विपरीत सुशिक्षित व्यक्ति किसी की ग़ल्तियों का प्रचार करने से बचता है । त्रुटियों की जानकारी उसे भी होती है लेकिन उसमें दोष दृष्टि की बीमारी नहीं होती । उसमें यह समझ होती है कि किसी की त्रुटियों के
प्रचार के बजाए उनका निवारण कैसे किया जाए । वह समझता है कि खिलते फूलों के बगीचे में मुरझाए फूलों को अलग करने का कार्य माली का है । रिपोर्टर द्वारा लिखे गए लेख में वर्तनी संबंधी अशुद्धियों को दूर करने का कार्य संपादक का है या किसी स्थान विशेष की साफ सफाई का कार्य उस स्थान विशेष पर उक्त प्रयोजन के लिए नियुक्त कर्मचारियों का है… और यह कि इन कमियों की ओर शासन तंत्र का ध्यान आकृष्ट करने का कार्य मीडिया का है । एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते वह कमियों को दूर करने के लिए उत्तरदाई व्यक्तियों के संज्ञान में उन कमियों को ला सकता है । लेकिन वह कभी भी चूककर्ता व्यक्ति को नीचा दिखाने के उद्देश्य से उनकी कमियों का प्रचार प्रसार नहीं करता ।
— शिवकुमार बिलगरामी