दोष ककर ?
दोष ककर ?
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बीचे रोड मकइ,धान पसारि सूखाउ,
बथानि गाय-गोरु के सेहो बनाऊ,
दुर्घटना जे भेल तऽ दोष ककर ।
अनहोनी जे भेल तऽ दोष ककर ।
सिस्टम के फेल कहु या दोष हमर,
भाग्य के दोष कहु या भूल हमर।
केइल गर्दन टेढ़, दाबि पैघ मोबाइल,
लहरियाकट दुपहिया चलाउ,
गिर माथ फुटल, तन बेसुध भेल,
सुत भेल अनाथ तऽ दोष ककर।
सिस्टम के फेल कहु या दोष हमर,
भाग्य के दोष कहु या भूल हमर ।
बीच बाजार करू गाड़ी ठाढ़ि,
जाम लगाऽ फ़ेर करु गोहारि,
लोग कहलक किअए आफनतोड़ै छेँ,
हम कहलिए तु हमरा ने जनैछऽ,
भेल हुडदंग तऽ दोष ककर ।
सिस्टम के फेल कहु या दोष हमर,
भाग्य के दोष कहु या भूल हमर ।
दिनभरि दालान पर ताश खेलु,
गप्पि लड़ाउ जुनि, समय बिताउ,
गाम घरक सब चुगली फरियाउ,
नत पता करु जिनगी बेहाल,
घर-अंगना नहिं सरिआयल तऽ दोष ककर ।
सिस्टम के फेल कहु या दोष हमर,
भाग्य के दोष कहु या भूल हमर ।
जाति-पाति में बंटि कऽ वोट हम देलहुं,
नीक बेजाए कऽ ध्यान नहिं धयलहुं,
अंगना – गाम हम सदा बिसरेलहुं ,
अपन विचार हम नहिं सरियेलहुं,
अब माथ पकड़िने दोष ककर।
सिस्टम के फेल कहु या दोष हमर,
भाग्य के दोष कहु या भूल हमर ।
मिथिला कऽ धाम के नहिं दियउ दोष,
यहि माटी के लियऽ मस्तक लगाऊ,
हरफार लऽ करु माटी के श्रृंगार,
दोष गढ़ऽ से पहिले करउ विचार,
दूर करु पहिले अपन अभिचार।
सिस्टम के फेल नहिं दोष हमर,
भाग्य के दोष नहिं भूल हमर ।
मौलिक एवं स्वरचित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ०३/०७/२०२१
मोबाइल न. – 8757227201