Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
30 Aug 2022 · 4 min read

*दोराहे पर खड़े हैं सहायता प्राप्त (एडेड) इंटर कॉलेज*

दोराहे पर खड़े हैं सहायता प्राप्त (एडेड) इंटर कॉलेज
——————————————————–
1971 में उत्तर प्रदेश सरकार ने प्राइवेट हाईस्कूल और इंटरमीडिएट कॉलेजों के अध्यापकों और कर्मचारियों को सरकारी खजाने से वेतन देने का निश्चय किया था । इसके लिए 1971 का वेतन वितरण अधिनियम पारित हुआ तथा समस्त प्राइवेट हाईस्कूल और इंटरमीडिएट कॉलेजों में सरकारी वेतन मिलने लगा । यह एक बड़ा कदम था । इससे अध्यापकों और कर्मचारियों का वेतन सम्मानजनक रूप से काफी बढ़ गया । प्रबंध समितियों को भी निश्चिंतता हुई कि अब उन्हें इस बात की चिंता नहीं करनी पड़ेगी कि उनके विद्यालय के अध्यापकों और कर्मचारियों को वेतन कैसे मिलेगा ? अनेक बार छात्रों से फीस कम आती थी, कई बार विद्यालयों के अन्य कार्यों में खर्च की जिम्मेदारी ज्यादा रहती थी, लेकिन अब जब सरकार ने वेतन देने का कार्य अपने हाथ में लिया तो प्राइवेट कालेजों मैं प्रबंध समितियों की समस्या, उन्हें लगा कि पूरी तरह हल हो गई। अध्यापक और कर्मचारी भी प्रसन्न थे, प्रबंध समितियों भी खुश थीं।
लेकिन 1971 के बाद धीरे-धीरे सरकार ने प्रबंध समितियों को अधिकार-विहीन करना शुरू कर दिया और सहायता प्राप्त विद्यालयों का संचालन अपने हाथ में ले लिया। अब स्थिति यह है कि सहायता प्राप्त विद्यालयों में न तो अध्यापक और कर्मचारी रखने का अधिकार प्रबंध समितियों को है, न विद्यार्थियों से फीस लेने का अधिकार है और न उस फीस को खर्च करने का अधिकार उनके पास है। केवल कुछ प्रशासनिक औपचारिकताएं प्रबंध समितियों को पूरी करनी होती हैं। प्रबंध समितियों को अधिकार-विहीन करने का सिलसिला न तो कम हुआ है, न रूका है ।
आज स्थिति यह है कि संख्या की दृष्टि से सहायता प्राप्त इंटर कॉलेजों में छात्रों की संख्या निरंतर गिरती जा रही है । शैक्षिक गुणवत्ता की दृष्टि से भी सहायता प्राप्त इंटर कॉलेजों में भारी गिरावट देखने में आई है। अनुशासन के स्तर पर भी ढिलाई नजर आती है । अध्यापकों के पद कई-कई साल तक खाली पड़े रहते हैं । नियुक्ति का अधिकार केवल सरकार को है । सरकारी-तंत्र की उदासीनता से विद्यालय बगैर शिक्षकों के चलते रहने के कारण इनमें समस्याएं बढ़ रही हैं।
सहायता प्राप्त इंटर कॉलेजों की संख्या पांच हजार से कम है, दूसरी ओर उन्नीस हजार से ज्यादा प्राइवेट इंटर कॉलेज ऐसे हैं, जिनको मान्यता तो मिली हुई है लेकिन सरकार वहां के अध्यापकों-कर्मचारियों को वेतन नहीं देती। यह विद्यालय वित्तविहीन विद्यालय कहलाते हैं।
इसके कारण वित्तविहीन विद्यालय के अध्यापकों और कर्मचारियों में काफी असंतोष है, जो निरंतर बढ़ता जा रहा है। उनका कहना है कि सरकार केवल पांच हजार से कम विद्यालयों को वेतन क्यों दे रही है ? जबकि वित्तविहीन उन्नीस हजार से ज्यादा विद्यालय भी उसी तरह प्रबंध समितियों द्वारा स्थापित किए गए हैं, जैसे सहायता प्राप्त विद्यालय स्थापित हुए थे । समान रूप से इंटरमीडिएट प्राइवेट विद्यालय होने पर भी यह भेदभाव क्यों ?
दूसरी तरफ सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों की प्रबंध समितियां यह नहीं समझ पा रही हैं कि आखिर सरकार ने वेतन देने की आड़ में हमारे विद्यालयों को हमसे छीन कर सरकारी-तंत्र के हाथ में क्यों दे दिया है ? उनका कहना है कि सरकार अगर वेतन देती है, तो हमें इसमें कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन विद्यालय के संचालन का अधिकार तो हमारे पास ही रहना चाहिए । आखिर हमने ही इन विद्यालयों की स्थापना की है, उनका पालन-पोषण किया है। जब वह विद्यालय आत्मनिर्भर हो गए तथा अपने-अपने क्षेत्र के नंबर-वन विद्यालय के रूप में गिने जाने लगे, तब सरकार ने 1971 के बाद उन पर कब्जा करना शुरू कर दिया ।
वर्तमान में सहायता प्राप्त इंटर कॉलेज दो पाटों के बीच में फॅंस कर रह गए हैं । प्रबंध समितियों से संचालन के अधिकार छीने जा चुके हैं लेकिन दूसरी तरफ सरकारी-तंत्र इन इंटर कॉलेजों के प्रति उदासीन है और भली प्रकार से इन विद्यालयों का संचालन सरकारी अधिकारी नहीं कर पा रहे हैं । सरकारी तंत्र जिम्मेदारी लेने से बचता है । वह कहता है कि सहायता प्राप्त इंटर कॉलेजों को वेतन जरूर सरकार दे रही है, मगर यह प्राइवेट प्रबंध समितियों द्वारा संचालित हैं । इसलिए इनको सही चलाने की जिम्मेदारी उन पर ही आती है । सरकारी तंत्र का कहना है कि अगर कोई कमी है, तो प्रबंध समितियां जिम्मेदार हैं। कुल मिलाकर प्रबंध समितियों को अधिकार विहीन करने के बाद भी सरकारी तंत्र जिम्मेदारी के लिए प्रबंध समितियों को ही आरोपित करता है । इसका खामियाजा अंततोगत्वा प्राइवेट इंटर कॉलेजों को ही उठाना पड़ रहा है । वह शैक्षिक उन्नयन की दृष्टि से पिछड़ते जा रहे हैं तथा उनकी चमक कम होती जा रही है ।
समस्या के समाधान का एक उपाय सहायता प्राप्त इंटर कॉलेजों का पूर्ण राष्ट्रीयकरण हो सकता है। किंतु प्रश्न यह है कि क्या सरकारी तंत्र अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर पाएगा ?
—————————————-
लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451
————————————–
नोट : लेखक सहायता प्राप्त इंटर कालेजों के प्रबंधकों की रामपुर नगर समिति के अध्यक्ष हैं।

Language: Hindi
Tag: लेख
144 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all

You may also like these posts

"दिल की बात"
Dr. Kishan tandon kranti
Dr Arun Kumar shastri
Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
आज के वक्त में भागकर या लड़कर शादी करना  कोई मुश्किल या  बहा
आज के वक्त में भागकर या लड़कर शादी करना कोई मुश्किल या बहा
पूर्वार्थ
*।।ॐ।।*
*।।ॐ।।*
Satyaveer vaishnav
अजीब बात है
अजीब बात है
shabina. Naaz
प्रण होते है
प्रण होते है
manjula chauhan
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
जबसे उनको रकीब माना है।
जबसे उनको रकीब माना है।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
सम्बन्धों  की  भीड़  में,  अर्थ बना पहचान ।
सम्बन्धों की भीड़ में, अर्थ बना पहचान ।
sushil sarna
शांति दूत हमेशा हर जगह होते हैं
शांति दूत हमेशा हर जगह होते हैं
Sonam Puneet Dubey
बचपन
बचपन
प्रकाश जुयाल 'मुकेश'
लाख तूफ़ान आए, हिम्मत हारना मत ।
लाख तूफ़ान आए, हिम्मत हारना मत ।
Neelofar Khan
रिश्ता ख़ामोशियों का
रिश्ता ख़ामोशियों का
Dr fauzia Naseem shad
जय श्रीराम
जय श्रीराम
Pratibha Pandey
*आख़िर कब तक?*
*आख़िर कब तक?*
Pallavi Mishra
कागज
कागज
SATPAL CHAUHAN
बड़े बुजुर्गों ,माता पिता का सम्मान ,
बड़े बुजुर्गों ,माता पिता का सम्मान ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
जब लोग आपसे खफा होने
जब लोग आपसे खफा होने
Ranjeet kumar patre
23/47.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/47.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
"जिंदगी"
Yogendra Chaturwedi
ज्ञान वापी दर्शन (घनाक्षरी छंद)
ज्ञान वापी दर्शन (घनाक्षरी छंद)
guru saxena
कैसे करूँ मैं तुमसे प्यार
कैसे करूँ मैं तुमसे प्यार
gurudeenverma198
दीवाना
दीवाना
देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'
..
..
*प्रणय*
प्रकाश पर्व
प्रकाश पर्व
Shashi kala vyas
बहुत उम्मीदें थीं अपनी, मेरा कोई साथ दे देगा !
बहुत उम्मीदें थीं अपनी, मेरा कोई साथ दे देगा !
DrLakshman Jha Parimal
जीवन प्रत्याशा
जीवन प्रत्याशा
Sanjay Narayan
बह्र -212 212 212 212 अरकान-फ़ाईलुन फ़ाईलुन फ़ाईलुन फ़ाईलुन काफ़िया - आना रदीफ़ - पड़ा
बह्र -212 212 212 212 अरकान-फ़ाईलुन फ़ाईलुन फ़ाईलुन फ़ाईलुन काफ़िया - आना रदीफ़ - पड़ा
Neelam Sharma
कुठिया छोटी सी )
कुठिया छोटी सी )
Dr. P.C. Bisen
कहीं वैराग का नशा है, तो कहीं मन को मिलती सजा है,
कहीं वैराग का नशा है, तो कहीं मन को मिलती सजा है,
Manisha Manjari
Loading...