दोय चिड़कली
बापू सूत्या हा दरवाजै मांय
उणां रै मांचै रै पागां पर
आसै-पासै बैठ’र
दोय चिड़कली चींचाट करै ही
बापू री नींद बीडरगी ही
बापू गमछै रो फटकारो दियो
चिड़कलियां उडगी
आपगो आलणौ छोड’र
दूर आभै मांय
दूजो, नूंवों घर बसावण सारू,
बापू सोय ग्या निरवाळा होय’र
अेक अणचींती लाम्बी नींद
आज बरसां बाद
दोन्यूं चिड़कलियां री चींचाट
अेक पोथी रै पानै पर छप’र
अेकर फेरुं घरै पूगी
म्हैं देख्यो चिड़कलियां रै
आलणै री जिग्यां कानी
बा सूनी पड़ी ही
उण रै ठीक नीचै भींत पर
थोड़ी सी’क छेती सूं
दोय फोटूवां टंगै ही
भाई अर बापू री
फूलां री माळा साथै
म्हैं भाज’र
मां री छाती रै चिपग्यो
गीली आंख्यां लेय’र
चिड़कलीयां री चींचाट
सूणीजै ही लगोतार
कानां मांय
पोथी रै मिस
मीठी-मीठी।
– राजदीप सिंह इन्दा