**दोनों थे राज़ी **
खिला-खिला सा उपवन एक।
खिली थी कलियां जिसमें अनेक।
झूम रहा था अपनी धुन में घूम रहा था।
भोंरा उनको अपलक देख।।
कली एक थी उसको भायी।
दिल में उसके वही समाई ।
लगे थे कली के इरादे भी नेक।।
नजदीक था उसके आया।
अपना प्रस्ताव सुनाया।
दोनों थे राज़ी दोनों का अपना विवेक ।।
पंखुड़ियां अपनी फैलाई।
रुत मिलन की थी जो आई।
हर क्षण अब तो दोनों ,
करने लगे एक दूसरे की देखरेख।।
राजेश व्यास अनुनय