दोगली सोच
जब वे
कथित ‘जातिवाद’ से
हो रहे थे लाभान्वित
या होते रहे तो
‘जातिवाद’ सही है
कहते रहे-
यह तो हमारी परंपरा है
शास्त्रोक्त है,
यह तो-
हमारी तहजीब है
विश्व की अनोखी
लाजवाब संस्कृति है.
अगर अब
‘जाति’ के सहारे
दलित-पिछड़ों-आदिवासियों को
मिल रहा संरक्षण
तो ‘जातिवाद’
गलत है
इंसानियत के लिए फांस है
राष्ट्रीय एकता के लिए
विघातक है,
प्रतिभा पलायन का
कारक है.
इस देश के
कथित ‘कुलीन’ जनों का
यही महाज्ञान है.
अरे खाक महाज्ञान
यह तो दोगलापन है!
दोगली सोच है!!
-29 जनवरी 2013, सोमवार
सायं 4.30 बजे
(लोकमत समाचार के परिशिष्ट ‘रसरंग’ में प्रकाशित लेख ‘जनगणना में जाति गणना’ पर प्रतिक्रिया)