!! दे दो सेना को छूट रे !!
लिख अपने इन हाथों से
तुझ को जो कुछ भी लिखना है
मन के अंदर की ज्वाला को
लिख लिख के ही तो उगलना है !!
देश आजाद बेशक है मेरा
पर गुलामी में अब भी जकड़ा है
होती अगर छूट मेरी सेना को
फाड़ देती दुश्मन का कपडा कपडा रे !!
वो भौंक रहा है सीमा पर
जैसे उस के बाप का दिया सब अपना है
दे दो छूट अगर सेना को
कर दें हराम उस का अब जीना रे !!
देश के भीतर पल रहा दुश्मन
लीक कर रहा यहाँ के सब भेद वो
क्यूं रख रख कर पाल रहा उस को
क्यूं नहीं मौत के घाट उ्रतार रहा रे !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ