*देह बनाऊॅं धाम अयोध्या, मन में बसते राम हों (गीत)*
देह बनाऊॅं धाम अयोध्या, मन में बसते राम हों (गीत)
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देह बनाऊॅं धाम अयोध्या, मन में बसते राम हों
1)
यही प्रार्थना तुझ से जिह्वा, सदा रामधुन गाए
गाकर नाम पवित्र राम का, धन्य जन्म हो जाए
अविचल दीपक जैसे जलता, भाव शुद्ध निष्काम हों
2)
सुख वैभव भौतिक आकर्षण, किंचित नहीं लुभाऍं
चलूॅं सदा कर्तव्य-मार्ग पर, बाधाऍं जो आऍं
उनके ही व्यक्तित्व निखरते, चले सहज वन-ग्राम हों
3)
रावण भीतर अहंकार का, उसे बाण से मारूॅं
सागर करना पार चुनौती, लेकिन कभी न हारूॅं
लंका से बढ़ जन्मभूमि, जननी सच्चे सुखधाम हों
देह बनाऊॅं धाम अयोध्या, मन में बसते राम हों
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451