देह और ज्ञान
देह और ज्ञान
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कबीर दास जी के इस दोहे पर मेरी एक रचना
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जाति न पुछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान ।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥
उज्जड़ बैठा चौराहे पे, बाटे सबको ज्ञान
पढ़ा नहीं खुद कुछ, सारा ही अज्ञान
साथ में बैठी टोली, वाह वाह करने को
उज्जड के संग साथ बिताए, नजारे देखने को।।1।।
जात पात से ऊपर होता,है प्रभु का ज्ञान
साधु संत बता गए सब, है कोई सावधान?
जो भी उठे आजकल , झाड़े प्रभु का ज्ञान
अंतर्मन में पाप छुपा, कैसा भी हो परिणाम।।2।।
मोल करो उस ज्ञान की, जिससे मिले भगवान
दे सके जो भी उसको, उसपर ज्यादा मत दो ध्यान
देह की पूजा मत करो, है नश्वर ये सामान
बताएं जो सिमरन उसने,उसपे दो ध्यान।।3।।
कह गए कबीरदास जो, सरल शब्दों में ज्ञान
मूर्ख हम बालक है जो, फैला घोर अज्ञान
चिपके पड़े हैं देह से आज भी, पाने को ज्ञान
देह से ऊपर सिमरन होता, यहीं तो संज्ञान।।4।।
मंदार गांगल “मानस”