#देसी_ग़ज़ल-
#देसी_ग़ज़ल-
■ वट-वृक्ष उगाने निकले हैं।
【प्रणय प्रभात】
● मैला मन ले गंग नहाने निकले हैं।
सारे पापी पुण्य कमाने निकले हैं।।
● जिन लोगों ने अब तक खेत नहीं देखे।
गमलों में वट-वृक्ष उगाने निकले हैं।।
●जो घोड़ों को घास हरी ना दे पाए।
आज गधों को दाल खिलाने निकले हैं।।
● नज़र मिलाने से बचते हैं आपस में।
लगता है सब ऐब छुपाने निकले हैं।।
● काग़ज़ की कश्ती है चप्पू लोहे का।
जग को गंगा पार कराने निकले हैं।।
● पांव दुखाने वाले थक के चूर हुए।
कामचोर सब पांव पुजाने निकले हैं।।
● डीज़ल की टंकी लटकाए कांधे पे।
सब जंगल की आग बुझाने निकले हैं।।
● ओव्हर-एज हुए सर्विस के चक्कर में।
डिगरी वाले भैंस चराने निकले हैं।।
● अपना सिर औरों से खुजवाने वाले।
अब दुनिया की पीठ खुजाने निकले हैं।।
● टूटे छप्पर फूस की कुटिया वाले भी।
आंधी को मेहमान बनाने निकले हैं।।
● लिए उस्तरा बैठा है सय्याद मगर।
पंछी अपनी पूंछ कटाने निकले हैं।।
● उनसे आबो-दाने की उम्मीद न कर।
वो ख़ुद अपनी भूख मिटाने निकले हैं।।
● साल चुनावी आया पुश्तैनी झूठे।
सच्चाई का पाठ पढ़ाने निकले हैं।
★संपादक/न्यूज़&व्यूज़★
श्योपुर (मध्यप्रदेश)