देश
कहां तो तय था घर हर एक सर के लिए,
यहां तो घर मयस्सर नहीं बेघर के लिए।
यहां गरीबों को नहीं रोटी-मकान मिलता है,
यहां मयस्सर है रोटी सिर्फ़ अमीरों के लिए।
वो शेख़ी में है कि वो हार नहीं सकता,
मिलेगा एक दिन सिकंदर उसे भिड़ंत के लिए।
ना हो रोटी तो पानी से पेट भर लेंगे,
ऎसी खुद्दारी ज़रूरी है इस सफर के लिए।
सच कहें तो शिली जाए जबान सायार की,
ये सच ज़रूरी है इस वतन के लिए।
जिए तो हर घड़ी हम अपने ही वतन के लिए,
मरे तो भी वो मौत अपने ही वतन के लिए।