“देश है मेरा हिन्दुस्तान “
गणतंत्र दिवस की अग्रीम बेला मे एक छोटी सी रचना आपके लिए लाये है.
“देश है मेरा हिन्दुस्तान ” लेखक राहुल आरेज
क्या मजाल थी उन अंग्रेजो की जो शासन कर गये मेरे देश पर,
तब भी आतंक समाया था जयचंदो का पर,
क्या विसात थी उन जयचंदो की क्यो मेरे देश को चाट गये,
बस उंस यही रह जाता मन मे क्यो मेरे देश को बाँट गये,
बहुत दिन हो गये इन बातो को मुझे इन पर एतबार नही ,
मर मिट जाये भारत माँ के लिए हर कोई महाराणा प्रताप नही,
चले हम आज के दौर मे नया पथ देखने को,
जहाँ देहज ने विवश कर दिया बेटी को जिंदा जलने को,
हम ही दागी हम ही बागी,
क्योकि लोकतंत्र हमारा हैं,
मिट जाये या बिक जाये ये देश ,
क्योकि जयचंदोँ का देश हमारा है.
घोटाले होते इस वीरभोग्य भूमि पर,
चारा भी चर जाता लालू पटना मे वैठा अपनी कोठी पर,
धरती भी छोडी नही इन दलालो कर बाँडर बेचान यहाँ ,
बेटी बिकती, रोटी बिकती बिकते इज्जत मान यहाँ,
हर गली अक्षरधाम बनी , हर मोहल्ला कश्मीर की घाटी,
इस देश की कौमी एकता जेहाद के नाम पर बाँटी