देश से दौलत व शुहरत देश से हर शान है।
गज़ल
2122/2122/2122/212
देश से दौलत व शुहरत देश से हर शान है।
देश से ही हम, हमारी देश से पहचान है।।
देश के प्रति प्रेम का अंकुर अगर फूटा नहीं,
वो हृदय बंजर समझ लो या कि कब्रिस्तान है।
विश्व में जाकर के देखो जलवा अपने देश का,
देश के ही नाम से मिलता बड़ा सम्मान है।
घास की रोटी भी खाकर वीर जीते शान से,
गैर देशों का उन्हें फीका लगे पकवान है।
देश ‘प्रेमी’ के लिए क्या जाति मजहब मायने,
खून के कण कण में जिसके सिर्फ़ हिंदुस्तान है।
………✍️ सत्य कुमार प्रेमी