देश रक्षा के ए-सिपाई
देश सीमा को न ओझल होने देता।
भूखा , प्यासा होकर धरा लिए रहता ।।
स्वयं के जीवन का झण्डा गाढ देई,,
देश रक्षा के ए – सिपाई ।
मूख पर तेज सोहे, हाथो में बाहूबल।
मन मनन सोचता कब आयेगा वो कल।।
सिना भर के सामना कर बैरी को मिटाई,,
देश रक्षा के ए – सिपाई।
हंस दृष्टि दूत देखण नजर लिए रखता।
कर्ण की गुंजन से काय हिम्मत भर देता।।
जब-जब आये मौंका बैरी का चौंका जाई,
देश रक्षा के ए – सिपाई ।
आँखो का गहना कदमो की भर आहट।
सिने पर प्रहार लिए मूँह को रक्त प्रकट ।।
बैरी को मिटाता बारह कोषो न नजर आई,
देश रक्षा के ए – सिपाई।
तैने न अपने लिए कभी कुछ न मांगा।
परिवार का न सोसब, तु एक महा सांगा।।
तेरी गाथा से यूवक बन जायेंगे सिपाई,,
देश रक्षा के ए – सिपाई ।
देश का गर्व हैं ,सिपाई तेरा होगा उद्धार।
देश का तु गर्व करता सदा चमत्कार।।
तेरे को जग नमन क,न तेरी भरपाई,,
देश रक्षा के ए – सिपाई।
तेरे जन्म को तेरी आहूति को वाह – वाह।
जीवन की करूणा ने मूझमे संचार भरे आह
रणदेव कहे हैं सीपाई हमेशा रणजीत होई,,
देश रक्षा के ए – सिपाई ।
रणजीत सिंह “रणदेव”चारण ।
मुण्डकोशियां
7300174927