” ऐ वतन “
वो जुनून की हद का इश्क हो
वो सुकून की हद का इश्क हो
अगर ये ना हो सके तो फिर माफ कर
किसी और से इस कदर इश्क ना हो ,
तेरी शान के लिए मरूँ मैं
तेरी आन के लिए कटूँ मैं
जो ना मर सकूँ ना कट सकूँ
तो किसी के लिए ना जी सकूँ ,
तेरे नाम पे तने हैं सब
तेरे मान पे सने हैं सब
तेरे आकार को साकार दूँ
इस माट के जने हैं सब ,
हर एक को तेरी फिक्र हो
हर ज़र्रे में तेरा ज़िक्र हो
हर दिल में तेरी धड़क हो
हर लहू में तेरी फड़क हो ,
तेरे रूतबे को मैं हनक़ दूँ
तेरी ज़मी को मैं ख़नक दूँ
दिली चाह है मेरी यही
एक – एक को मैं ये सनक दूँ ,
सबकी सोच में तुझे उतार दूँ
सबके जोश से तुझे गुज़ार दूँ
जिस सोच में तू ना उतर सके
जिस जोश में तू ना गुज़र सके
उस ऐसे किसी भी एक को
तुझे माँ कहने का हक़ ना दूँ ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 08 – 07 – 2018 )