*देश पर जान कुर्बान करूँ*
देश पर जान कुर्बान करूँ मैं,
जन्म मिले सौ बार अगर,
सौ बार मरूँ मैं, पल-पल जीवन,
कण-कण तन का,
स्वदेश पर न्यौछावर करूँ मैं ।
पर्वत-सा दृढ़ कर, निश्चय स्थिर,
उद्वेग रुधिरमय, रग-रग परिणय,
जीवन का उद्धार करूँ मैं ।
देश पर जान कुर्बान करूँ मैं ।
रक्त-स्वेदमय लथपथ होकर,
स्वप्राण हथेलियों में लेकर,
जन-जन में हुंकार भरूँ मैं।
देश पर जान कुर्बान करूँ मैं ।
नित-सुरभी महके जीवन में,
अंतरंग सुख हो जन-जन में,
फूलों-सा गुलज़ार बनूँ मैं।
देश पर जान कुर्बान करूँ मैं ।
शशि-रवि सम प्रकाशित होकर,
अमित – पुण्ज प्रकाश देकर,
जन-जन में आगाज़ भरूँ मैं ।
देश पर जान कुर्बान करूँ मैं ।
युग-युग, प्रतिक्षण हो यह शोभित,
हर जन ‘मयंक’ पर हो प्रफुल्लित,
हर अवसर और त्योहारों पर,
सद्भावना का प्रसार करूँ मैं ।
देश पर जान कुर्बान करूँ मैं ।
रचयिता : के.आर.परमाल ‘मयंक’