देश खोखला
देश खोखला होता जाता,आज यहाँ मक्कारों से
सदा कलंकित होता भारत, भीतर के गद्दारों से
लाज शर्म है नहीं किसी को,अपना नाम डुबाने में
मटियामेट करे इज्जत को देखो आज जमाने में।
देश धरा के जो हैं दुश्मन, सबको नाच नचाते हैं
सारी अर्थव्यवस्था को वे,तितर वितर कर जाते हैं
अपनी मर्जी के हैं मालिक,अपना हुक्म चलाते हैं
लूट लूट कर भरे तिजोरी, फिर ये गुम हो जाते हैं।
आज व्यवस्था जमीदोज है, देखो इन हैवानों से
कैसे मुक्ति मिले भारत को,हर पाजी शैतानों से
बड़े कुकर्मी कातिल हैं ये, सबकुछ चट कर जाएंगे
अपनी माँ के दामन को ही, नोच नोचकर खाएंगे।
नहीं सुरक्षित आज अस्मिता,दम्भी पहरेदारों से
सदा डोलियां लुटती जाती,इन जयचंद कहारों से
ताल ठोकने वाले देखो, आज बहुत शर्मिन्दा हैं
मुख पर कालिख पोत रहे जो,बड़े शौक से जिन्दा हैं।
लूट सको जितना भी लूटो चनाव के मैदानों में
नङ्गा भारत काँप रहा है खेतों औ खलियानों में।।
डॉ. छोटेलाल सिंह मनमीत