देश की जड़ें सींचने वाला
देश की जड़ें सींचने वाला खुद सूखा क्यूं रह जाता है
देश का पेट भरने वाला खुद भूखा क्यूं रह जाता है
हर बार सियासत में भोला भाला किसान ठगा गया
अर्थव्यवस्था को संभालने वाला खुद लुटा क्यूं रह जाता है
जिसके खून पसीने से चलते है तुम्हारे कारखाने
तुम शीश महलों में हो उसका छप्पर टूटा क्यूं रह जाता है
दिन दूनी रात चौगुनी मेहनत कर के फसल उगाता है
फिर भी उसका मुकद्दर उससे जाने रूठा क्यूं रह जाता है