देश का हक
यह हरगिज़ न कहो कि मर गया कोई
देश का हक़ था अदा कर गया कोई
बिटिया के पीले हाथ कौन करेगा
शहनाइयों का काम अब मौन करेगा
दायित्वों का निर्वहन कौन करेगा
जान पर खेलकर गुजर गया कोई
यह हरगिज़ न कहो कि मर गया कोई
देश का हक़ था अदा कर गया कोई
करुण क्रंदन बनी घर की किलकारी
कोई दहाड़े, कोई चूड़ी तोड़े बेचारी
पापा अब न आएंगे चीखे राज दुलारी
ज़िंदगी का कर्ज अदा कर गया कोई
यह हरगिज़ न कहो कि मर गया कोई
देश का हक़ था अदा कर गया कोई
दुश्मन का दुस्साहस कितना तगड़ा है
कितनी ही मांगों का सिंदूर उजड़ा है
मातम ही मातम हर ओर उमड़ा है
यूं भी हम पर उपकार कर गया कोई
यह हरगिज़ न कहो कि मर गया कोई
देश का हक़ था अदा कर गया कोई
गर्व है भारत को ऐसे परिवारों पर
देश के सपूतों और वीर संतानों पर
नमन करो मिलकर इन बलिदानों पर
बलिदान भी अनूठा कर गया कोई
यह हरगिज़ न कहो कि मर गया कोई
देश का हक़ था अदा कर गया कोई
कब तक सहमे रहोगे ललकारों से
कब बदला लोगों तुम इन गद्दारों से
बदले में सौ सिर बिछा दो तलवारों से
अफसोस कायर का न सर गया कोई
यह हरगिज़ न कहो कि मर गया कोई
देश का हक़ था अदा कर गया कोई
© अरशद रसूल