देव दर्शन या मृत्यु दर्शन
देव दर्शन करने तो जाते लोग ,
क्यों नहीं रखते वहां अनुशासन।
अपनी मूर्खताओं और दिठाई से,
औरों की डालते जोखिम में जान ।
हर वर्ष होते है ऐसे हादसे दुखदाई ,
सरकार भी लेती नहीं संज्ञान।
करवा कर नियमों का पालन श्रद्धालुओं से,
सुगम और सरल क्यों नहीं बनाती तीर्थ स्थान ।
भई ! यदि यूं ही करनी है लापरवाही ,
तो घर में ही रहना बेहतर है ।
ऐसे हादसों से क्षति ग्रस्त हो कर मरने से ,
अपने घर पर ही मरना बेहतर है।
वैसे भी किसी महापुरुष ने कहा था ,
मन चंगा तो कठौती में गंगा ।
अब मन में भक्ति है या नही ,ईश्वर जाने!
फिर तीर्थ स्थानों में जाकर ना करते दंगा ।
क्या भरोसा है इतने श्रद्धालुओं में ,
भक्तों में कौन है कितना सच्चा।
कुछ तो जाते लोफर बाजी करने,
और कुछ मात्र करने जाते सैर सपाटा।
कुछ तो जाते है दर्शन करने नगर,
उनका मन होता है विश्वास में कच्चा ।
ऐसी भक्ति और तीर्थ यात्रा का कोई ,
प्रयोजन या लाभ भला क्या ?
अपितु अपनी अनुशासन हीनता से,
अन्य लोगों की मृत्यु का कारण बनते हो ,
इससे मिलता है तुम्हें पुण्य क्या ?
फिर भी तीर्थ यात्रा है यदि इतना जरूरी,
तो खुद को संयम में रखिए ।
और प्रशासन से हमारा अनुरोध है ,
अनुशासन का कढ़ाई से पालन करवाइए ।